दिन रात उसके हिज्र का दीमक लगे लगे
दिल के तमाम ख़ाने मुझे खोखले लगे,
महफ़िल में नाम उस का पुकारा गया था
और सब लोग थे कि मेरी तरफ़ देखने लगे,
अफ़सोस फ़िक्र ए जाँ ही नहीं रहती है हमें
अफ़सोस आप जान हमें मानने लगे,
जो कहते थे कोई तुझे ठुकरा न पाएगा
जब बात ख़ुद पे आई तो वो सोचने लगे,
मैं आज तक न ठीक से ख़ुद को समझ सका
एक ही दफ़ा में आप मुझे जानने लगे..!!
~अक्स समस्तीपुरी