देखो अभी लहू की एक धार चल रही है
बाज़ू कटे हैं फिर भी तलवार चल रही है,
तहज़ीब ने ये कैसा मुख़्बिर लगा रखा है
हर लम्हा साथ घर की दीवार चल रही है,
कुछ तो मेरी उदासी हंगामा भी किया कर
तू आज साथ मेरे बाज़ार चल रही है,
तुम साथ हो तो कैसा चिपका पड़ा है दरिया
और ये हवा भी कैसी हमवार चल रही है,
कर लो अयादत उसकी तुम भी तो फ़रहत एहसास
दुनिया बहुत दिनों से बीमार चल रही है..!!
~फ़रहत एहसास
1 thought on “देखो अभी लहू की एक धार चल रही है”