दामन ए सद चाक को एक बार सी लेता हूँ मैं
तुम अगर कहते हो तो कुछ रोज़ जी लेता हूँ मैं,
बेसबब पीना मेरी आदात में शामिल नहीं
मस्त आँखों का इशारा हो तो पी लेता हूँ मैं,
गेसुओं का हो घना साया कि शिद्दत धूप की
वो मुझे जिस रंग में रखता है जी लेता हूँ मैं,
आते आते आ गए अंदाज़ जीने के मुझे
अब तो ख़ून के आँसू भी पी लेता हूँ मैं..!!
~राजेन्द्र नाथ रहबर