चेहरे का ये निखार मुक़म्मल तो कीजिए
ये रूप ये सिंगार मुक़म्मल तो कीजिए,
रहने ही दे हुज़ूर नशेमन की बात अब
दो दिन की ये बहार मुक़म्मल तो कीजिए,
ख़्वाबो की ईंट ईंट जोड़ी थी आपने
सपनो की वो दीवार मुक़म्मल तो कीजिए,
काटी तभी जाग जाग के हमने फ़िराक में
रातों का वो शुमार मुक़म्मल तो कीजिए,
अब और कितना खून बहेगा ज़मीन पर
लाशों का क़ारोबार मुक़म्मल तो कीजिए,
किस्से सुने थे आपके इंसाफ़ के हुज़ूर
कैसे हुआ फ़रार ? मुक़म्मल तो कीजिए..!!