चाँद पर बस्तियाँ तो बसा लोगे
मगर चाँदनी कहाँ से लाओगे ?
सलब कर लीं समाअतें सबकी
किस को अब दास्ताँ सुनाओगे ?
छीन ली है शहर भर की गोयाई
फिर अब सदाएं कहाँ से पाओगे ?
सब की आँखें निकाल दी तुमने
अब ये आँखें किसे दिखाओगे ?
हर सू बोये नफ़रतों के कीकर
तो फिर गुलाब कहाँ से पाओगे ?
बे तहाशा ख़ुदा तो बन बैठें हैं
सोचो इतने सज़्दे कहाँ से लाओगे ??