उनका दावा, मुफ़लिसी का मोर्चा सर हो गया
पर हकीक़त ये है मौसम और बदतर हो गया,
बंद कल को क्या किया मुखिया के खेतो में बेगार
अगले दिन ही एक होरी और बेघर हो गया,
जब हुई नीलाम कोठे पर किसी की आबरू
फिर अहिल्या का सरापा ज़िस्म पत्थर हो गया,
रंग रोगन से पुता, पहलू में लेकिन दिल नहीं
आज का इन्सान भी काग़ज का पैकर हो गया,
माफ़ करिए, सच कहूँ तो आज हिन्दुस्तान में
कोख़ ही ज़रखेज़ है अहसास बंज़र हो गया..!!
~अदम गोंडवी