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Bazm e Shayari :: Hindi / Urdu Poetry, Gazals, Shayari
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Occassional Poetry

हाल ए दिल पे ही शायर बुनते है गज़ल…

haal e dil pe hi shayar bunte hai gazal

हाल ए दिल पे ही शायर बुनते है गज़ल जो बात दिल की समझते है वो सुनते है …

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बिखरे बिखरे सहमे सहमे रोज़ ओ शब देखेगा कौन…

bikhre bikhre sahme sahme roz o shab

बिखरे बिखरे सहमे सहमे रोज़ ओ शब देखेगा कौन लोग तेरे जुर्म देखेंगे सबब देखेगा कौन ? हाथ …

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ज़रीदे में छपी है एक ग़ज़ल दीवान जैसा है…

zaride me chhapi ek gazal deewan jaisa hai

ज़रीदे में छपी है एक ग़ज़ल दीवान जैसा है ग़ज़ल का फ़न अभी भी रेत के मैदान जैसा …

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ज़िन्दगी दी है तो जीने का हुनर भी देना…

zindagi dee hai to jine ka hunar bhi dena

ज़िन्दगी दी है तो जीने का हुनर भी देना पाँव बख्शे है तो तौफ़ीक ए सफ़र भी देना, …

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दुश्मन मेरी ख़ुशियों का ज़माना ही नहीं था…

dushman meri khushiyo ka zamana hi nahi tha

दुश्मन मेरी ख़ुशियों का ज़माना ही नहीं था तुमने भी कभी अपना तो जाना ही नहीं था, क्या …

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ना जाने कैसी तक़दीर पाई है…

naa jaane kaisi taqdeer paai hai

ना जाने कैसी तक़दीर पाई है जो आया आज़मा के चला गया, कल तक गले लगाने वाला भी …

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तनाव में जब आ जाए तो धागे टूट जाते है…

tanav me jab aaye to dhaage tut jate hai

तनाव में जब आ जाए तो धागे टूट जाते है ज़रा सी बात पर पुराने रिश्ते टूट जाते …

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काँटो की चुभन पे फूलो का मज़ा भी…

kaanto ke chubhan pe follo ka maza bhi

काँटो की चुभन पे फूलो का मज़ा भी दिल दर्द के मौसम में रोया भी हँसा भी, आने …

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गर हक़ चाहते हो तो फिर जंग लड़ो…

gar haq chahte ho to jang lado guhar lagane se kahan nizam badlega

गर हक़ चाहते हो तो फिर जंग लड़ो गुहार लगाने से कहाँ ये निज़ाम बदलेगा, छाँव ढूँढ़ते हो, …

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जाने क्यूँ अब शर्म से चेहरे गुलाब नहीं होते…

jaane kyun ab log khuli kitab nahi hote

जाने क्यूँ अब शर्म से चेहरे गुलाब नहीं होते जाने क्यूँ अब मस्त मौला मिजाज़ नहीं होते, पहले …

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तुझे पुकारा है बे

तुझे पुकारा है बे इरादा

फिर हरीफ़ ए बहार

फिर हरीफ़ ए बहार हो बैठे

हर सम्त परेशाँ तिरी

हर सम्त परेशाँ तिरी आमद के क़रीने

सोच बदल जाती है

सोच बदल जाती है,हालात बदल जाते हैं

उजड़े हुए हड़प्पा के

उजड़े हुए हड़प्पा के आसार की तरह

निगाह ए यार के

निगाह ए यार के बदलने में कुछ देर नहीं लगती

कोई सुनता ही नहीं

कोई सुनता ही नहीं किस को सुनाने लग जाएँ

जानता हूँ कि तुझे

जानता हूँ कि तुझे साथ तो रखते है कई

मेरे उसके दरमियाँ ये

मेरे उसके दरमियाँ ये राब्ता है और बस

चल निकलती हैं ग़म

चल निकलती हैं ग़म ए यार से बातें क्या क्या

ऐसा है कि सब ख़्वाब

ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते

अब तक यही सुना

अब तक यही सुना था कि बाज़ार बिक गए

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तुझे पुकारा है बे

तुझे पुकारा है बे इरादा

फिर हरीफ़ ए बहार

फिर हरीफ़ ए बहार हो बैठे

हर सम्त परेशाँ तिरी

हर सम्त परेशाँ तिरी आमद के क़रीने