गर हक़ चाहते हो तो फिर जंग लड़ो…

गर हक़ चाहते हो तो फिर जंग लड़ो
गुहार लगाने से कहाँ ये निज़ाम बदलेगा,

छाँव ढूँढ़ते हो, बड़े परेशां धूप से हो
दरख़्त लगाओ तो ये इंतजाम बदलेगा,

हमेशा यूँ ही रहेंगे तख़्तनशी देखो
हुक्मरानों का यहाँ फ़क़त नाम बदलेगा,

अब कोई क़िरदार नया तलाश करो
तो इस कहानी का अब अंज़ाम बदलेगा,

पोशाक ज़रा कीमती तुम पहन के आओ
फिर देखना साक़ी तुम्हारा ज़ाम बदलेगा,

ये दौर सौदेबाज़ी है इसका ख्याल रखना
चेहरा देख कर हर बार यहाँ ईनाम बदलेगा,

जगह इबादत की बदल देने से यकीं जानो
ना अल्लाह बदला है, ना कभी राम बदलेगा..!!

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