हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर माह-ए-तमाम हुए..

हिलाल-ए-शाम से

लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुएहम हर बुर्ज में घटते घटते सुब्ह तलक गुमनाम हुए,

कुछ कहने का वक़्त नहीं कुछ न कहो ख़ामोश रहो…

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कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहोऐ लोगो ख़ामोश रहो हाँ ऐ लोगो ख़ामोश

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा…

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कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तेराकुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा

ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में तमाम तेरी हिकायतें हैं…

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ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में तमाम तेरी हिकायतें हैंये तज़किरे तेरी लुत्फ़ के हैं ये शेर तेरी

हर एक दर्द मुहब्बत के नाम होता है…

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हर एक दर्द मुहब्बत के नाम होता हैयही तमाशा मगर सुबह ओ शाम होता है, कही भी मिलता

उसे कहना मुहब्बत दिल के ताले तोड़ देती है…

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उसे कहना मुहब्बत दिल के ताले तोड़ देती हैउसे कहना मुहब्बत दो दिलो को जोड़ देती है, उसे

कहे दुनियाँ उसे ऐसे ही बेकार न आये…

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कहे दुनियाँ उसे ऐसे ही बेकार न आयेक़िस्मत का मेरी बन के ख़रीदार न आये, इस बार मुलाक़ात

जिन्हें कर सका न क़ुबूल मैं…

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जिन्हें कर सका न क़ुबूल मैंवो शरीक़ राह ए सफ़र हुए, जो मेरी तलब मेरी आस थेवही लोग

अभी क्या कहे अभी क्या सुने ?

abhi-kya-kahe-abhi-kya

अभी क्या कहे अभी क्या सुने? कि सर ए फसील ए सकूत ए जाँकफ़ ए रोज़ ओ शब

कभी ऐसा भी होता है ?

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कभी ऐसा भी होता है ?कि जिसको हमसफ़र जानेकि जो शरीक़ ए दर्द होवही हमसे बिछड़ जाए, कभी