ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में तमाम तेरी हिकायतें हैं
ये तज़किरे तेरी लुत्फ़ के हैं ये शेर तेरी शिकायतें हैं,
मैं सब तेरी नज़्र कर रहा हूँ ये उन ज़मानों की स’अतें हैं
जो ज़िन्दगी के नये सफ़र में तुझे किसी रोज़ याद आयें,
तो एक एक हर्फ़ जी उठेगा पहन के अन्फ़ास की क़बायें
उदास तनहाईयों के लम्हों में नाच उठेंगी ये अप्सरायें,
मुझे तेरी दर्द के अलावा भी और दुख थे, ये जानता हूँ
हज़ार ग़म थे जो ज़िन्दगी की तलाश में थे, ये जानता हूँ,
मुझे ख़बर है कि तेरी आँचल में दर्द की रेत छानता हूँ
मगर हर एक बार तुझ को छू कर ये रेत रंग-ए-हिना बनी है,
ये ज़ख़्म गुलज़ार बन गये हैं ये आहें-सोज़ाँ घटा बनी है
ये दर्द मौज-ए-सबा हुआ है ये आग दिल की सदा बनी है,
और अब ये सारी मता-ए-हस्ती ये फूल ये ज़ख़्म सब तेरे हैं
ये दुख के नौहे ये सुख के नग़्में जो कल मेरे थे वो अब तेरे हैं,
जो तेरी क़ुर्बत तेरी जुदाई में कट गये रोज़-ओ-शब तेरे हैं
वो तेरा शायर तेरा मुग़न्नी वो जिस की बातें अजीब सी थी,
वो जिस के अन्दाज़ ख़ुस्रो-वाना थे और अदायेँ ग़रीब सी थीं
वो जिस के जीने की ख़्वाहिशें भी ख़ुद उस के अपने नसीब सी थीं,
न पूछ उस का कि वो दीवाना बहुत दिनों का उजड़ चुका है
वो कोहकन तो नहीं था लेकिन कड़ी चट्टानों से लड़ चुका है,
वो थक चुका है और उस का तेशा उसी के सीने में गड़ चुका है..!!
~अहमद फ़राज़