जब भी तुम चाहो मुझे ज़ख्म नया देते रहो…

जब भी तुम चाहो मुझे ज़ख्म नया देते रहो
बाद में फिर मुझे सहने की दुआ देते रहो,

ठीक से सोच समझ कर मुझे रुखसत करना
ये न हो बाद में रो रो के सदा देते रहो,

ठीक है मान लिया है कि खता थी मेरी
जैसे तुम चाहो, मैं हाज़िर हूँ, सज़ा देते रहो,

छोड़ जाओगे तो रो धो के संभल जाऊँगा
पास रह कर मुझे गम हद से ज्यादा देते रहो,

रूठ कर वो जो तुम्हे ख़ुद ही मना लेता है
तुम उसी को दुआ सबसे जुदा देते रहो..!!

Leave a Reply