बसा बसाया शहर अब बंजर लग रहा है
चारो ओर उदासियो का मंज़र लग रहा है,
जाने अंजाने से लोग क़ातिल हो जैसे
हर एक कि साँसों में खंज़र लग रहा है,
बड़ी मुश्किलों से बनाया था बरसो में
अब काटने को दौड़ता हुआ घर लग रहा है,
कौन बचेगा, कैसे बचेगा ख़ुदा ही जाने ?
हर कोने में बिखरा सा ज़हर लग रहा है,
शायद ईमान कमज़ोर हो चुका है हमारा
इसी लिए तो हर लम्हा अब डर लग रहा है..!!