बहुत सलीक़े से चीख ओ पुकार करते रहे…

बहुत सलीक़े से चीख ओ पुकार करते रहे
हम अपने दर्द के मरकज़ पे वार करते रहे

ज्यादा उम्र तो गाड़ी घसीटने में कटी
जहाँ पे हो सका किस्तों में प्यार करते रहे

सवाद ए अक्ल में मजनूं की आबरू के लिए
हम एक हाथ से दामन को तार करते रहे

कही कही पे हमारी पसंद पूछी गई
ज्यादा काम तो बे इख़्तियार करते रहे

थी नींद मुफ़्त मगर ये भी ख़ुद को दे न सके
गिज़ा के नाम पे बस ज़हर मार करते रहे

ट्रेन छुटी तो कितने ही अश्क छूट गए
तमाम उम्र नशिस्तें शुमार करते रहे

उदास रुत में जो यादो का उजड़ा घर खोला
यकीनी वायदे बहुत शोगवार करते रहे

कभी कभी तो फ़क़त चाय की प्याली से
खिज़ा की बूढी थकन को बहार करते रहे

बवक़्त ए ज़ख्म शुमारी ये राज़ फ़ाश हुआ
हम अपनी ज़ेब से कुछ बढ़ के प्यार करते रहे

हजारो ख्वाहिशो को दिल में ज़िन्दा गाड़ दिया
पुल ए सिरात कई रोज़ पार करते रहे

बहुत से लोगो पे कैश अच्छा वक़्त आया भी
हमारे जैसे तो फ़क़त इंतज़ार करते रहे..!!

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