सोचा कि ख़ुद पे ज़रा सी इनायत कर लूँ..
सोचा कि ख़ुद पे ज़रा सी इनायत कर लूँऐ ज़िन्दगी तुझसे वो पहली सी मुहब्बत कर लूँ, सुनाऊँ
सोचा कि ख़ुद पे ज़रा सी इनायत कर लूँऐ ज़िन्दगी तुझसे वो पहली सी मुहब्बत कर लूँ, सुनाऊँ
मैं सोचो के किस गुमाँ में थामैं किसी दूसरे जहान में था, रहने वाले आबाद हो न सकेकोई
सब्ज़ गुम्बद से सदा आती हैमुझको वो ताज़ा हवा आती है, चाँद भी तब ही चमक उठता हैजब
बैठ कर पास मेरे एक चिड़ियाँ ने आज ये सवाल कियाहम तो ठहरे परिंदे, इन्सान ने इन्सान का
ये जो आवाम में फ़िक्र ए आम है सियासतमेरे मुल्क की तो बिल्कुल खाम है सियासत, नफ़रत का
इन्सान भूल चुका है इन्सान की क़ीमतबाज़ार में बढ़ गई आज हैवान की क़ीमत, इक्तिदार में आते है
तन्हाइयो में अश्क बहाने से क्या मिलाख़ुद को दीया बना के जलाने से क्या मिला ? मुझसे बिछड़
इश्क़ सहरा है कि दरियाँ कभी सोचा तुमनेतुझसे क्या है मेरा नाता कभी सोचा तुमने ? हाँ मैं
हम शज़र से नहीं साये से वफ़ा करते हैयही है वजह कि हम लोग दगा करते है, हम
वो दौर और था वो महबूबा और थीजिनके आशिको को इश्क़ में मुक़ाम मिला है ये दौर और