अगर चाहते हो तुम सदा मुस्कुराना
कभी अपनी माँ का दिल न दुखाना,
करो अपनी माँ की हमेशा गुलामी
फिर नौकर बनेगा तुम्हारा ज़माना,
गुस्सा न करना कभी अपनी माँ से
हमेशा मुहब्बत से तुम उनको बुलाना,
ख़ुशी से अपनी माँ की हर एक बात मानो
यक़ीनन ज़न्नत में बनेगा तुम्हारा ठिकाना,
चलेगी आसमानों पर तारीफ़ तुम्हारी
कभी अपना गुस्सा न माँ को दिखाना..!!
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ख़्वाहिशों का इम्तिहाँ होने तो दो

कोई महबूब सितमगर भी तो हो सकता है

दिल ए पुर शौक़ को पहलू में दबाए रखा

वो देखने मुझे आना तो चाहता होगा

काली रात के सहराओं में नूर सिपारा लिखा था

कुछ भी हो वो अब दिल से जुदा हो नहीं सकते…

मौज ए गुल मौज ए सबा मौज ए सहर लगती है

हैरतों के सिलसिले सोज़ ए निहाँ तक आ गए..

नूर ए नज़र, चाँद, और आफ़ताब है बच्चे

पिछले ज़ख़्मों का इज़ाला न ही…


















