तितली से दोस्ती न गुलाबों का शौक़ है
मेरी तरह उसे भी किताबों का शौक़ है,
वर्ना तो नींद से भी नहीं कोई ख़ास रब्त
आँखों को सिर्फ़ उसके ख़्वाबों का शौक़ है,
हम आशिक़ ए ग़ज़ल हैं तो मग़रूर क्यों न हों ?
आख़िर ये शौक़ भी तो नवाबों का शौक़ है,
उस शख़्स के फ़रेब से वाक़िफ़ हैं हम मगर
कुछ अपनी प्यास को ही सराबों का शौक़ है,
गिरने दो ख़ुद सँभलने दो ऐसे ही चलने दो
ये तो ‘चराग़’ ख़ाना ख़राबों का शौक़ है..!!
~चराग़ शर्मा