हर नई शाम सुहानी तो नहीं होती है

हर नई शाम सुहानी तो नहीं होती है
और हर उम्र जवानी तो नहीं होती है,

तुम ने एहसान किया था सो जताया तुम ने
जो मोहब्बत हो जतानी तो नहीं होती है,

दोस्तो सच कहो कब दिल को क़रार आएगा
हर घड़ी आस बँधानी तो नहीं होती है,

दिल में जो आग लगी है वो लगी रहने दे
यार हर आग बुझानी तो नहीं होती है,

जब भी मिलते हैं चटक उठते हैं कलियों की तरह
दोस्ती हो तो पुरानी तो नहीं होती है,

बारहा उस की गली से ये गुज़र कर सोचा
हर गली छोड़ के जानी तो नहीं होती है,

मौज होती है कहीं और भँवर होते हैं
सिर्फ़ दरिया में रवानी तो नहीं होती है,

दूर हो कर भी वो नज़दीक है क़ुर्बत यानी
अज़ रह ए क़ुर्ब मकानी तो नहीं होती है,

शाइबा जिस में हक़ीक़त का नहीं हो अजमल
वो कहानी भी कहानी तो नहीं होती है..!!

~अजमल सिराज

संबंधित अश'आर | गज़लें

Leave a Reply