कर गए अश्क मेंरी आँख को जल थल क्या क्या
अब के बरसा है तेरी याद का बादल क्या क्या
जिस तरफ़ देखिए एक क़ौस ए क़ुज़ह है रक़्साँ
रंग भरता है फ़ज़ा में तेरा आँचल क्या क्या
तू तो चुप चाप था लेकिन तुझे मालूम नहीं
कह गया मेरी नज़र से तेरा काजल क्या क्या
शहर ए सफ़्फ़ाक की बेदर्द गुज़रगाहों में
जगमगाते हैं चराग़ ए सर ए मक़्तल क्या क्या
किस लिए जाएँ भला दश्त को हम दीवाने
शहर ही बनते चले जाते हैं जंगल क्या क्या
अब भी हर मोड़ पे एक तिश्नालबी है बेताब
यूँ तो इस शहर पे बरसा किए बादल क्या किया..??
~सलीम बेताब