ये किस ने कहा तुम कूच करो

ये किस ने कहा तुम कूच करो बातें न बनाओ इंशा जी
ये शहर तुम्हारा अपना है इसे छोड़ न जाओ इंशा जी,

जितने भी यहाँ के बासी हैं सब के सब तुमसे प्यार करें
क्या उन से भी मुँह फेरोगे ये ज़ुल्म न ढाओ इंशा जी,

क्या सोच के तुम ने सींची थी ये केसर क्यारी चाहत की
तुम जिनको हँसाने आए थे उनको न रुलाओ इंशा जी,

तुम लाख सियाहत के हो धनी एक बात हमारी भी मानो
कोई जा के जहाँ से आता नहीं उस देस न जाओ इंशा जी,

बिखराते हो सोना हर्फ़ों का तुम चाँदी जैसे काग़ज़ पर
फिर इनमें अपने ज़ख़्मों का मत ज़हर मिलाओ इंशा जी,

एक रात तो क्या वो हश्र तलक रखेगी खुला दरवाज़े को
कब लौट के तुम घर आओगे सजनी को बताओ इंशा जी,

नहीं सिर्फ़ क़तील की बात यहाँ कहीं साहिर है कहीं आली है
तुम अपने पुराने यारों से दामन न छुड़ाओ इंशा जी..!!

~क़तील शिफ़ाई

 

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