ज़ुल्म के तल्ख़ अंधेरो के तलबगार हो तुम
ये इल्म है कि नफ़रत के मददगार हो तुम,
जिसके हर लफ्ज़ में एक मौत नज़र आती है
दौर ए ज़दीद में खूँखार सा अख़बार हो तुम,
घर घर में ज़राइम को पनाह दिया है तुम ने
फक़त मेरे नहीं वतन के भी गुनाहगार हो तुम,
आज मैं कहता हूँ कल ये दुनियाँ भी कहेगी
लालच ओ हसद की गुलामी से बेज़ार हो तुम,
~नवाब ए हिन्द