ज़िंदगी भी अजब तमाशा है

ज़िंदगी भी अजब तमाशा है
कभी आशा कभी निराशा है,

जिस में करती हैं गुफ़्तुगू आँखें
वो मोहब्बत की एक भाषा है,

ज़ुल्मत ए ग़म है छट ही जाएगी
तुझ को ऐ दोस्त क्यों निराशा है ?

क्यों अकड़ता है ऐ दिल ए नादाँ
तू तो पानी में एक बताशा है,

इस ज़माने में आदमी शाहीन
जैसे एक चलता फिरता लाशा है..!!

~उस्मान शाहीन

ज़िक्र होता है उस परी वश का

Leave a Reply