ज़बाँ कुछ और कहती है नज़र कुछ और कहती है
मगर ये ज़िंदगी की रहगुज़र कुछ और कहती है,
बयाँ ये बाग़बाँ का है उजाड़ा बाग़ आँधी ने
मगर कटी हुई शाख़ ए शजर कुछ और कहती है,
ये उजड़ा जिस्म ज़ख़्मी रूह और सहमी हुई लड़की
ज़माना मार डालेगा अगर कुछ और कहती है,
दबाव था कि लालच था लगा अख़बार ये पढ़ कर
हक़ीक़त और ही कुछ थी ख़बर कुछ और कहती है,
निशानी छोड़ जाती हैं असद ये उम्र की राहें
मुसाफ़िर कुछ कहे गर्द ए सफ़र कुछ और कहती है..!!
~असद रज़ा