ये सोचा नहीं है कि किधर जाएँगे…

ये सोचा नहीं है कि किधर जाएँगे
मगर हम अब यहाँ से गुज़र जाएँगे,

इसी खौफ़ से रातों को नींद आती नहीं
कि हम ख़्वाब देखेंगे तो डर जाएँगे,

डराता बहुत है ये समन्दर हमें
समन्दर में एक दिन उतर जाएँगे,

जो रोकेंगी रास्ता कभी ये मंज़िले
तो घड़ी दो घड़ी को ठहर जाएँगे,

कहाँ देर तक रात ठहरती है कोई
उसी तरह ये दिन भी गुज़र जाएँगे,

इसी खुशगुमानी ने तन्हा किया है
जिधर हम जाएँगे, हमसफ़र जाएँगे,

बदलता है सब कुछ कभी न कभी
एक दिन ये सितारे भी बिखर जाएँगे..!!

~आलम खुर्शीद

Leave a Reply