एक दिन मुल्क के हर घर में उजाला होगा…

एक दिन मुल्क के हर घर में उजाला होगा
हर शख्स यहाँ सबका भला चाहने वाला होगा,

इंसानों को होगी इंसानियत से मुहब्बत जब
मिटेंगी नफरते, अमन का ही बोलबाला होगा,

मेरा हमदम, मेरा हमदर्द, हमसफ़र जो है
वक़्त ए गम में दुआएँ खैर माँगने वाला होगा,

राम ओ रहीम गमगुसार होंगे एक दूसरे के
वो भी लौटेगा जिसे नफ़रत ने निकाला होगा,

कोई ठिठुरेगा नहीं मौसम ए सरमा में कही
हर एक ज़िस्म पे लिबास ओ दुशाला होगा,

आदमी आदमी होगा, ना रहेगा कोई फ़र्क
ना कोई गोरा ही रहेगा ना कोई काला होगा,

न किसी की ज़िन्दगी गुज़रेगी गम के साये में
न दिलो में किसी के रंज ओ गम का छाला होगा,

बयाँ कर सकेंगे खुल के एक दिन हाल ए दिल
न होंगी बंदिशे न ख्यालात पे कोई ताला होगा..!!

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