ये बेड़ियाँ मेरे पाँव में तुम पहना तो रहे हो
फिर अहद भी ख़ुद ही तोड़ के जा रहे हो,
पलकों की मुंडेरों पे परिंदों को उड़ाओ
तस्लीम किया तुम मुझे समझा तो रहे हो,
पछतावा न हो कल, क़दम सोच के लेना
जज़्बात में उल्फ़त की क़सम खा तो रहे हो,
समझाया था कल कितना मगर बाज़ न आये
क्या होगा अभी माना कि पछता तो रहे हो,
रहने भी अभी दीजिए अश्को का तक़ल्लुफ़
जब जानते हो दिल पे सितम ढा तो रहे हो,
अब एक नये तर्ज़ ए रिफाक़त पे अमल हो
तुम बीच में लोगों के भी तन्हा तो रहे हो,
कल ठोकरों में जग की कहीं छोड़ न देना
एक दर्द ज़दा शख्स को अपना तो रहे हो,
इन्सान कभी रिज्क से भी सेर हुआ है ?
तक़दीर में था जितना लिखा पा तो रहे हो,
इस में भी कोई रम्ज़ कोई फ़लसफ़ा होगा
जी लो झूम के ज़िन्दगी के गीत गा तो रहे हो..!!