तुम्हे न फिर से सताएँगे हम, ख़ुदा हाफिज़
कि अब न लौट के आएँगे हम, ख़ुदा हाफिज़,
रखेंगे तुमको बहुत दूर अपनी नज़रों से
मगर न दिल से भूला पाएँगे हम, ख़ुदा हाफिज़,
हमारी ज़ात से तकलीफ हो रही है तुम्हे
एक और ही शहर बसाएँगे हम, ख़ुदा हाफिज़,
बिछड़ते वक़्त उदासी है आखिरी हद पर
मगर न अब अश्क बहाएँगे हम, ख़ुदा हाफिज़,
अगर मिलेंगी न खुशियाँ तुम्हारी निस्बत से
तो ग़मों का जश्न ही मनाएँगे हम, ख़ुदा हाफिज़,
निकाल दो ये परस्तिश की आरज़ू दिल से
अब तुम्हे ख़ुदा न बनाएँगे हम, ख़ुदा हाफिज़..!!