तुम हो जब मेरे लिए हैं दो जहाँ मेरे लिए…

तुम हो जब मेरे लिए हैं दो जहाँ मेरे लिए
ये ज़मीं मेरे लिए ये आसमाँ मेरे लिए,

इस तरह जज़्बात ए आज़ादी बहल जाएँगे क्या
बन रहा है क्यूँ क़फ़स में आशियाँ मेरे लिए,

मैं चला जाऊँ न गुलशन छोड़ कर क़ब्ल अज़ बहार
क्यूँ गिरीं सारे चमन पर बिजलियाँ मेरे लिए ,

रो रहा हूँ आज मैं सारे जहाँ के वास्ते
रोएगा कल देखना सारा जहाँ मेरे लिए,

इज़्तिराब ए शौक़ से क्या क्या हुई हैं लग़्ज़िशें
इल्तिफ़ात ए यार ने जब इम्तिहाँ मेरे लिए,

है मोहब्बत कब रहीन ए राह ओ रस्म ए ताहिरी
बंदगी है बेनियाज़ ए आस्ताँ मेरे लिए,

बेपनाही है यही ‘बिस्मिल’ जो हुस्न ओ इश्क़ की
होगी नाकाफ़ी हयात ए जाविदाँ मेरे लिए..!!

~बिस्मिल सईदी

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