तू रंग है ग़ुबार हैं तेरी गली के लोग

तू रंग है ग़ुबार हैं तेरी गली के लोग
तो फूल है शरार हैं तेरी गली के लोग,

तो रौनक़ ए हयात है तो हुस्न ए काएनात
उजड़ा हुआ दयार हैं तेरी गली के लोग,

तू पैकर ए वफ़ा है मुजस्सम ख़ुलूस है
बदनाम ए रोज़गार हैं तेरी गली के लोग,

रौशन तेरे जमाल से हैं मेहर ओ माह भी
लेकिन नज़र पे बार हैं तेरी गली के लोग,

देखो जो ग़ौर से तो ज़मीं से भी पस्त हैं
यूँ आसमाँ शिकार हैं तेरी गली के लोग,

फिर जा रहा हूँ तेरे तबस्सुम को लूट कर
हर चंद होशियार हैं तेरी गली के लोग,

खो जाएँगे सहर के उजालों में आख़िरश
शम्अ’ सर ए मज़ार हैं तेरी गली के लोग..!!

~हबीब जालिब

शहर वीराँ उदास हैं गलियाँ

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