तो क्या ये तय है कि अब उम्र भर नहीं मिलना

तो क्या ये तय है कि अब उम्र भर नहीं मिलना
तो फिर ये उम्र भी क्यों तुम से गर नहीं मिलना ?

ये कौन चुपके से तन्हाइयों में कहता है
तेरे बग़ैर सकूँ उम्र भर नहीं मिलना ?

चलो ज़माने की ख़ातिर ये जब्र भी सह लें
कि अब मिले तो कभी टूट कर नहीं मिलना,

रह ए वफ़ा के मुसाफ़िर को कौन समझाए ?
कि इस सफ़र में कोई हमसफ़र नहीं मिलना,

जुदा तो जब भी हुए दिल को यूँ लगा जैसे
कि अब गए तो कभी लौट कर नहीं मिलना..!!

~सुरूर बाराबंकवी

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