थे ख़्वाब एक हमारे भी और तुम्हारे भी
पर अपना खेल दिखाते रहे सितारे भी,
ये ज़िंदगी है यहाँ इस तरह ही होता है
सभी ने बोझ से लादे हैं कुछ उतारे भी,
सवाल ये है कि आपस में हम मिलें कैसे
हमेशा साथ तो चलते हैं दो किनारे भी,
किसी का अपना मोहब्बत में कुछ नहीं होता
कि मुश्तरक हैं यहाँ सूद भी ख़सारे भी,
बिगाड़ पर है जो तन्क़ीद सब बजा लेकिन
तुम्हारे हिस्से के जो काम थे सँवारे भी,
बड़े सुकून से डूबे थे डूबने वाले
जो साहिलों पे खड़े थे बहुत पुकारे भी,
जैसे रेल में दो अजनबी मुसाफ़िर हों
सफ़र में साथ रहे यूँ तो हम तुम्हारे भी,
यही सही तेरी मर्ज़ी समझ न पाए हम
ख़ुदा गवाह कि मुबहम थे कुछ इशारे भी,
यही तो एक हवाला है मेरे होने का
यही गिराती है मुझको यही उतारे भी,
इसी ज़मीन में एक दिन मुझे भी सोना है
इसी ज़मीं की अमानत हैं मेरे प्यारे भी,
वो अब जो देख के पहचानते नहीं ‘अमजद’
है कल की बात वो लगते थे कुछ हमारे भी..!!
~अमजद इस्लाम अमजद