तस्कीन न हो जिस में वो राज़ बदल डालो
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो,
तुम ने भी सुनी होगी बड़ी आम कहावत है
अंजाम का हो ख़तरा आगाज़ बदल डालो,
पुर सोज़ दिलों को जो मुस्कान न दे पाए
सुर ही न मिले जिस में वो साज़ बदल डालो,
दुश्मन के इरादों को है ज़ाहिर अगर करना
तुम खेल वही खेलो अंदाज़ बदल डालो,
ऐ दोस्त करो हिम्मत कुछ दूर सवेरा है
गर चाहते हो मंज़िल परवाज़ बदल डालो..!!
~अल्लामा इक़बाल