ज़िंदगी ये तो नहीं तुझ को सँवारा ही न हो…
ज़िंदगी ये तो नहीं तुझ को सँवारा ही न हो कुछ न कुछ हम ने …
ज़िंदगी ये तो नहीं तुझ को सँवारा ही न हो कुछ न कुछ हम ने …
बूढ़ा टपरा, टूटा छप्पर और उस पर बरसातें सच उसने कैसे काटी होंगी, लंबी लंबी …
चराग़ अपनी थकन की कोई सफ़ाई न दे वो तीरगी है कि अब ख़्वाब तक …
जिस्म का बोझ उठाए हुए चलते रहिए धूप में बर्फ़ की मानिंद पिघलते रहिए, ये …
दुनियाँ कहीं जो बनती है मिटती ज़रूर है परदे के पीछे कोई न कोई ज़रूर …
ज़रीदे में छपी है एक ग़ज़ल दीवान जैसा है ग़ज़ल का फ़न अभी भी रेत …
ज़िन्दगी बस एक ये लम्हा मुझे भी भा गया आज बेटे के बदन पर कोट …
समझता खूब है वो भी बयान की कीमत चुका रहा है जो अब भी ज़ुबान …
काँटे ही चुभन दे ज़रूरी तो नहीं फूल भी नश्तर चभोते है, बारिश ही भिगोए …
ज़िन्दगी यूँ हुई बसर तन्हा काफ़िला साथ और सफ़र तन्हा, अपने साये से चौक जाते …