राहें वही खड़ी थी मुसाफ़िर भटक गया…
राहें वही खड़ी थी मुसाफ़िर भटक गया एक लफ्ज़ आते आते लबो तक अटक गया, …
राहें वही खड़ी थी मुसाफ़िर भटक गया एक लफ्ज़ आते आते लबो तक अटक गया, …
ये सच है कि हम लोग बहुत आसानी में रहें पर नाम वही कर गए …
दिल जब घबराये तो ख़ुद को एक क़िस्सा सुना देना ज़िन्दगी कितनी भी मुश्किल क्यूँ …
तस्वीर का रुख एक नहीं दूसरा भी है खैरात जो देता है वही लूटता भी …
ज़िन्दगी से एक दिन मौसम खफ़ा हो जाएँगे रंग ए गुल और बू ए गुल …
एक दिन ख़ुद को अपने पास बिठाया हमने पहले यार बनाया फिर समझाया हमने, ख़ुद …
आया ही नहीं कोई बोझ अपना उठाने को कब तक मैं छुपा रखता इस ख़्वाब …
सवाद ए शाम न रंग ए सहर को देखते हैं बस एक सितारा ए वहशत …
लोग कहते थे वो मौसम ही नहीं आने का अब के देखा तो नया रंग …
किसी से क्या कहे सुने अगर गुबार हो गए हम ही हवा की ज़द में …