कोई ज़ब्त दे न जलाल दे…
कोई ज़ब्त दे न जलाल दे मुझे सिर्फ़ इतना कमाल दे, मुझे अपनी राह पे डाल दे कि
कोई ज़ब्त दे न जलाल दे मुझे सिर्फ़ इतना कमाल दे, मुझे अपनी राह पे डाल दे कि
ऐ मेरी क़ौम के लोगो ज़रा होशियार हो जाओउठो अब नींद से जागो के अब बेदार हो जाओ,
सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते हर दर पे जो झुक जाए उसे सर
बना के भेजा था उस रब ने अपना तर्जुमान तुम्हे छोड़ के सब कुछ फक़त तुम इन्सान बनो,
कुछ इस तरह से इबादत खफ़ा हुई हमसे नमाज़ ए इश्क बहुत कम अदा हुई हमसे, गरीब आँखों
कश्ती चला रहा है मगर किस अदा के साथ हम भी न डूब जाएँ कहीं ना ख़ुदा के
चलो आओ हम एक वायदा करें दिलो में बस अपने मुहब्बत भरे, वो सब काम जिनसे दुखे दिल