सूरमाओं को सर ए आम से डर लगता है
अब इंक़लाब को अवाम से डर लगता है,
हमीं हैं ज़ेर ए बहस और हमीं ख़ुदा ए बहस
फिर हमें किसलिए अंजाम से डर लगता है,
वज़ीफ़ाख़ोर रवायत ने मार डाला है
हुनर को गर्दिश ए अय्याम से डर लगता है,
हमारे वर्ग से संघर्ष गया शक़ आया
जैसे अखरोट को बादाम से डर लगता है,
हमीं हैं रश्क़ ए मलाइक हमीं नबी अव्वल
हमीं को नींद में इल्हाम से डर लगता है..!!
~संजय चतुर्वेदी