सोच के ख़ुद ही बताएं ये बताने वाले
तूने सीखे हैं जो अंदाज़ ज़माने वाले,
आधे रस्ते से पलटने की अज़ीयत क्या है
तूने सोचा ही नहीं हाथ छुड़ाने वाले,
तुझ पे उस वक़्त खुलेगा कि अज़ीयत क्या है
तुझ से जब रूठ गए तुझको मनाने वाले,
तू जो कहता था कि तू वक़्त बदल देगा
क्या ले के आ सकता है तू दिन वो सुहाने वाले ?
दुःख पुराना मैं नए लोगों से कैसे बांटूं ?
काश ! मिल जाए कहीं लोग वो पुराने वाले..!!