शेर से शाइरी से डरते हैं
कम नज़र रौशनी से डरते हैं,
लोग डरते हैं दुश्मनी से तेरी
हम तेरी दोस्ती से डरते हैं,
दहर में आह ए बे कसाँ के सिवा
और हम कब किसी से डरते हैं,
हम को ग़ैरों से डर नहीं लगता
अपने अहबाब ही से डरते हैं,
दावर ए हश्र बख़्श दे शायद
हाँ मगर मौलवी से डरते हैं,
रूठता है तो रूठ जाए जहाँ
उन की हम बेरुख़ी से डरते हैं,
हर क़दम पर है मोहतसिब जालिब
अब तो हम चाँदनी से डरते हैं..!!
~हबीब जालिब