ऐ दोस्त तूने दोस्ती का हक़ अदा किया
अपनी ख़ुशी लुटा कर मेरा गम घटा दिया,
कहने को तो अपने है जहाँ में बहुत मगर
अपनों ने मुझे दर से दरबदर करा दिया,
लड़ता रहा दुनियाँ से अपनों के लिए मैं
अपनों ने तो वफ़ा का मुझे ये सिला दिया,
बड़े अरसे दराज़ के बाद गम हुआ था कम
हँसना अभी सीखा था कि फिर से रुला दिया,
मन की लगी हुई आग बुझी थी अभी अभी
कुछ देर ही गुज़री थी कि घर भी जला दिया..!!