ऐसा शज़र ए बख्त सूख ही जाए तो बेहतर है,

सेहरा में साया तलक ना दे सके मुसाफ़िर को
ऐसा शज़र ए बख्त सूख ही जाए तो बेहतर है,

दिल की लगी को दिल्लगी समझे गर इश्क़ वाले
ऐसे दिलरुबा से तअल्लुक़ भुलाए तो बेहतर है,

पत्थर पे लिखी लकीर मिट जाए तो बेहतर है
ज़फ़ा ए संगदिल हरगिज़ याद न आए तो बेहतर है,

कागज़ पे लिखे लफ्ज़ जल भी जाए तो बेहतर है
किसी बेवफ़ा को दिल से भुलाए तो बेहतर है,

क्यों वक़्त को किसी के लिए बर्बाद करे हम ?
इस हाल को ना फिर माज़ी बनाये तो बेहतर है..!!

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