सरहदों पर है अपने जवानों का गम
और बस्ती में जलते मकानों का गम,
फिर से ये गंदी सियासत हवा दे गई
हमने देखा है जलती दुकानों का गम,
बस्तियाँ जल गई,कारवां भी लूट गए
और वो रह गए सुनाते बेगानों का गम,
देखले कोई मज़लूमों का दिल चीर कर
इस ज़मीं को तो है आसमानों का गम…!!