इंसान को वक़्त के हिसाब से चलना पड़ता है

इंसान को वक़्त के हिसाब से चलना पड़ता है
बाद ठोकर ही सही आख़िर संभलना पड़ता है,

हमदर्द बने अपने जब औक़ात बताने लगते है
उम्मीदों के झूठे ख़्वाबों से निकलना पड़ता है,

जब ईमां ओ ज़मीर का सौदा आम हो जाता है
नुकसान हक़ बोलने वालों को उठाना पड़ता है…!!

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