सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते
हर दर पे जो झुक जाए उसे सर नहीं कहते,
का’बे में मुसलमान को कह देते हैं काफ़िर
बुतख़ाने में काफ़िर को भी काफ़िर नहीं कहते,
रिंदों को डरा सकते हैं क्या हज़रत ए वाइ’ज़
जो कहते हैं अल्लाह से डर कर नहीं कहते,
का’बे ही में हर सज्दे को कहते हैं इबादत
मयख़ाने में हर जाम को साग़र नहीं कहते,
हर बार नए शौक़ से है अर्ज़ ए तमन्ना
सौ बार भी हम कह के मुकर्रर नहीं कहते,
मयख़ाने के अंदर भी वो कहते नहीं मयख़्वार
जो बात कि मयख़ाने के बाहर नहीं कहते,
क्या अहल ए जहाँ तुझ को सितमगर नहीं कहते
कहते तो हैं लेकिन तेरे मुँह पर नहीं कहते,
कहते हैं मोहब्बत फ़क़त उस हाल को ‘बिस्मिल’
जिस हाल को हम उन से भी अक्सर नहीं कहते..!!
~बिस्मिल सईदी