संगदिल कहाँ किसी का गमगुसार करते है

संगदिल कहाँ किसी का गमगुसार करते है
ये मुर्दा ज़मीर कब मज़लूमो से प्यार करते है,

ना फ़िक्र ए आलम, न खौफ़ ए परवरदिगार
ये सरमाया ए मुल्क को भी तार तार करते है,

हो जाए जो काबिज़ आईन ओ अदलिया पे
तो फिर सब फ़ैसले भी दिल फ़िगार करते है,

हाथों में आते ही तीर निहत्थो पे वार करते है
ये भरे पेट वाले ही भूखो का शिकार करते है,

माँ कह कर जो खाते है कसमे सुबह ओ शाम
वही नालायक फिर जमीं को शर्मसार करते है,

दावा ये कि बेगैरती आँखों से डर गई दुनियाँ
झूठे,हम कहाँ तेरी बातों का ऐतबार करते है..!!

~नवाब ए हिन्द

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