सहर क़रीब है तारों का हाल क्या होगा
अब इंतिज़ार के मारों का हाल क्या होगा ?
तेरी निगाह ने ज़ालिम कभी है ये सोचा
तेरी निगाह के मारों का हाल क्या होगा ?
मुक़ाबला है तेरे हुस्न का बहारों से
न जाने आज बहारों का हाल क्या होगा ?
नक़ाब उन का उलटना तो चाहता हूँ मगर
बिगड़ गए तो नज़ारों का हाल क्या होगा ?
मज़ाक़ ए दीद ही सहबा अगर बदल जाए
तो ज़िंदगी की बहारों का हाल क्या होगा..??
~अज्ञात
फ़स्ल ए गुल है सजा है मयख़ाना
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