सब को मा’लूम है ये बात कहाँ
दिन कहाँ काटता हूँ रात कहाँ ?
इस को तक़दीर ही कहा जाए
मैं कहाँ उन का इल्तिफ़ात कहाँ ?
जिन के आगे ज़बाँ भी हिल न सके
कहने बैठा हूँ दिल की बात कहाँ ?
सोच सकता हूँ कह नहीं सकता
लुट गई दिल की काएनात कहाँ ?
ऐ सबा उन की काकुलों को न छेड़
मुँह छुपाती फिरेगी रात कहाँ ?
वो तो आँसू निकल पड़े वर्ना
मैं कहाँ शरह ए वाक़ि’आत कहाँ ?
उन को एहसास हो चला है रईस
वो नज़र वो हँसी वो बात कहाँ..??
~रईस रामपुरी
मैं हज़ार बार चाहूँ कि वो मुस्कुरा के देखे
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