साक़ी शराब ला कि तबीअ’त उदास है
मुतरिब रुबाब उठा कि तबीअ’त उदास है,
रुक रुक के साज़ छेड़ कि दिल मुतमइन नहीं
थम थम के मय पिला कि तबीअ’त उदास है,
चुभती है क़ल्ब ओ जाँ में सितारों की रौशनी
ऐ चाँद डूब जा कि तबीअ’त उदास है,
मुझ से नज़र न फेर कि बरहम है ज़िंदगी
मुझ से नज़र मिला कि तबीअ’त उदास है,
शायद तेरे लबों की चटक से हो जी बहाल
ऐ दोस्त मुस्कुरा कि तबीअ’त उदास है,
है हुस्न का फ़ुसूँ भी इलाज ए फ़सुर्दगी
रुख़ से नक़ाब उठा कि तबीअ’त उदास है,
मैं ने कभी ये ज़िद तो नहीं की पर आज शब
ऐ महजबीं न जा कि तबीअ’त उदास है,
इमशब गुरेज़ ओ रम का नहीं है कोई महल
आग़ोश में दर आ कि तबीअ’त उदास है,
कैफ़िय्यत ए सुकूत से बढ़ता है और ग़म
क़िस्सा कोई सुना कि तबीअ’त उदास है,
यूँही दुरुस्त होगी तबीअ’त तेरी अदम
कमबख़्त भूल जा कि तबीअ’त उदास है,
तौबा तो कर चुका हूँ मगर फिर भी ऐ अदम
थोड़ा सा ज़हर ला कि तबीअ’त उदास है..!!
~अब्दुल हमीद अदम
























