क़ुदरत का करिश्मा भी क्या बेमिसाल है

क़ुदरत का करिश्मा भी क्या बेमिसाल है
चेहरे सफ़ेद काले पर खून सबका लाल है,

हिन्दू है यहाँ कोई, तो कोई मुसलमान है
कितना फरेबकार ये मज़हब का जाल है,

क़ायम न हो सके यकज़हती हमारे मुल्क में
सदा दूरी बने रहे ये सियासत की चाल है,

ज़मीं पे इन्सान ने बसा तो ली है बस्तियां
पर इंसानियत का आज भी जग में अकाल है,

दिन ईद का है, आ के गले से लगा ले मुझे
हर होली पे जैसे तू मुझे मलता गुलाल है..!!

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