वो दिल नवाज़ है लेकिन नज़र शनास नहीं

वो दिल नवाज़ है लेकिन नज़र शनास नहीं
मेरा इलाज मेरे चारागर के पास नहीं,

तड़प रहे हैं ज़बाँ पर कई सवाल मगर
मेरे लिए कोई शायान ए इल्तिमास नहीं,

तेरे जिलौ में भी दिल काँप काँप उठता है
मेरे मिज़ाज को आसूदगी भी रास नहीं,

कभी कभी जो तेरे क़ुर्ब में गुज़ारे थे
अब उन दिनों का तसव्वुर भी मेरे पास नहीं,

गुज़र रहे हैं अजब मरहलों से दीदा ओ दिल
सहर की आस तो है ज़िंदगी की आस नहीं,

मुझे ये डर है तेरी आरज़ू न मिट जाए
बहुत दिनों से तबीअ’त मेरी उदास नहीं..!!

~नासिर काज़मी

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