सब के होते हुए लगता है कि घर ख़ाली है…
सब के होते हुए लगता है कि घर ख़ाली है ये तकल्लुफ़ है कि जज़्बात …
सब के होते हुए लगता है कि घर ख़ाली है ये तकल्लुफ़ है कि जज़्बात …
खिड़कियाँ खोल रहा था कि हवा आएगी क्या ख़बर थी कि चिरागों को निगल जाएगी, …
मुलाकातें हमारी बेइरादा क्यों नहीं होतीं ? मुहब्बत की गुजर कहीं कुशादा क्यों नहीं होतीं …
मेरे दिल के अरमां रहे रात जलते रहे सब करवट पे करवट बदलते, यूँ हारी …
कुछ इस तरह से इबादत खफ़ा हुई हमसे नमाज़ ए इश्क बहुत कम अदा हुई …
कश्ती चला रहा है मगर किस अदा के साथ हम भी न डूब जाएँ कहीं …
ये है मयकदा यहाँ रिंद हैं यहाँ सब का साक़ी इमाम है ये हरम नहीं …
न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मालूम रहा ये वहम कि हम हैं सो …
किसी से भी नहीं हम सब्र की तलक़ीन लेते है हमें मिलती नहीं जो चीज …