मुझे ख़बर नहीं कितने ख़सारे रखे गए
मेरे नसीब में सब गम तुम्हारे रखे गए
हमारे साथ मुहब्बत में इतना ज़ुल्म हुआ
हमारी आँख में जलते अंगारे रखे गए
मैं कह चुका था मुझे तैरना नहीं आता
बहुत ही दूर तभी तो किनारे रखे गए
किसी से ख़ास तआल्लुक़ तो फिर बना ही नहीं
तुम्हारे बाद तो वक्ती गुज़ारे रखे गए
किसी की आँख तरसती रही उजाले को
किसी की आँख में सारे नज़ारे रखे गए
हम ऐसे लोग मुहब्बत का आसरा थे मगर
हमारे वास्ते झूठे सहारे रखे गए..!!